महिला दिवस विशेष :- मातृशक्ति का श्राप! – जब पार्वती के क्रोध से भृंगी हुए अपंग
स्त्री और पुरुष – यह दो रूप नहीं, बल्कि एक ही अस्तित्व के दो अभिन्न पहलू हैं। भारतीय दर्शन में यह अवधारणा हमेशा से रही है कि शिव और शक्ति अलग नहीं, बल्कि एक ही सत्य के दो पक्ष हैं। फिर भी, समाज में कई बार स्त्री को गौण, पुरुष पर निर्भर या उसके पूरक के रूप में देखा जाता रहा है। महिला दिवस के अवसर पर, शिव के परम गण भृंगी की कथा हमें यह स्मरण कराती है कि स्त्री और पुरुष की समानता कोई आधुनिक विचार नहीं, बल्कि सनातन सत्य है।
भृंगी की कथा: एक सीख
भृंगी, महादेव के महान भक्त थे। उनकी निष्ठा इतनी प्रबल थी कि वे शिव के अतिरिक्त किसी अन्य को न पूजते थे, यहाँ तक कि शक्ति को भी नहीं। लेकिन जब उन्होंने शिव की परिक्रमा में जगदंबा को बाधा समझकर उन्हें हटाने का प्रयास किया, तो महादेव ने अर्धनारीश्वर रूप धारण कर लिया—यह दिखाने के लिए कि शिव और शक्ति अलग नहीं किए जा सकते।
भृंगी की हठधर्मिता के कारण माता पार्वती ने उन्हें श्राप दिया, जिससे उनके शरीर से रक्त और मांस (जो मातृशक्ति का अंश होता है) विलग हो गया। वे केवल अस्थियों और मांसपेशियों का ढांचा रह गए। तब जाकर उन्हें एहसास हुआ कि मातृशक्ति के बिना अस्तित्व अधूरा है। पश्चाताप करने पर, माता ने उन्हें क्षमा किया, लेकिन भृंगी ने स्वयं अपने इस अधूरे रूप को बनाए रखने का अनुरोध किया—ताकि वे सदा इस सत्य का प्रमाण बनें कि नर और नारी एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं।
महिला दिवस पर इस कथा का महत्व
आज भी समाज में कहीं न कहीं भृंगी जैसी सोच मौजूद है, जो स्त्री को पुरुष से अलग या गौण मानने की भूल करती है। परंतु इस कथा का संदेश स्पष्ट है—स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं, प्रतिस्पर्धी नहीं। शिव और शक्ति की तरह, जब दोनों मिलकर चलते हैं, तभी संसार का संतुलन बना रहता है।
महिला दिवस केवल स्त्री के अधिकारों की बात करने का दिन नहीं है, यह उन मानसिकताओं को चुनौती देने का अवसर है जो स्त्री-पुरुष को अलग या असमान मानती हैं। यह उस शक्ति को नमन करने का दिन है, जो सृजन, पालन और संहार—तीनों रूपों में विद्यमान है।
शिव-शक्ति संतुलन: एक आवश्यक संदेश
समाज में वास्तविक प्रगति तब होगी जब हम भृंगी की भांति अपनी भूलों को पहचानेंगे और यह स्वीकार करेंगे कि स्त्री और पुरुष दोनों की समान भागीदारी से ही सृष्टि संभव है। किसी भी एक पक्ष की उपेक्षा या अवहेलना, असंतुलन और विघटन को जन्म देती है।
महिला दिवस पर हमें यह प्रतिज्ञा लेनी चाहिए कि हम हर स्त्री को केवल पूज्य नहीं, बल्कि समान अधिकार और सम्मान के योग्य मानें। शिव और शक्ति के मिलन से ही सृष्टि आगे बढ़ती है, और यही संतुलन हमें समृद्धि और शांति की ओर ले जाता है।