घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग – भक्तिपूर्ण प्रेम और त्याग की अमर गाथा
कल हमने नासिक स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन किए थे, जहाँ भगवान शिव त्रिनेत्र स्वरूप में ब्रह्मा और विष्णु के साथ प्रतिष्ठित हैं। अब हमारी द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा आगे बढ़ रही है महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की ओर।
सनातन परंपरा में घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में अंतिम स्थान प्राप्त है, परंतु इसकी महिमा और चमत्कार अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों के समान ही अनुपम हैं। यह पवित्र स्थान एलोरा की प्रसिद्ध गुफाओं के पास स्थित है, और इसकी कथा सच्चे प्रेम, भक्ति और त्याग की अमर मिसाल प्रस्तुत करती है।
अब, इस दिव्य ज्योतिर्लिंग के इतिहास, महत्व, कथा और पूजन विधि को विस्तार से जानते हैं। हर हर महादेव!
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का शास्त्रोक्त वर्णन
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का उल्लेख शिवपुराण, स्कंद पुराण और पद्म पुराण में मिलता है। इसे ‘कुंभी क्षेत्र’ में स्थित बताया गया है, जो प्राचीनकाल में एक महान तपोभूमि था।
यहाँ भगवान शिव का यह रूप “घृष्णेश्वर” अर्थात् “भक्त घृष्णा का ईश्वर” कहलाते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त यहाँ सच्चे मन से पूजा करता है, उसकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
प्राचीनकाल में देवगिरि पर्वत (आज का दौलताबाद क्षेत्र) के पास एक पुण्यात्मा ब्राह्मण सुधर्म और उनकी पत्नी घृष्णा रहते थे। वे अत्यंत धार्मिक और भगवान शिव के अनन्य भक्त थे।
घृष्णा प्रतिदिन 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा और अभिषेक करती थीं। लेकिन संतानहीन होने के कारण उन्हें समाज में तिरस्कार सहना पड़ता था। अंततः भगवान शिव की कृपा से उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
किन्तु, दुर्भाग्य से उनके जेठानी सुधर्मा को यह सहन नहीं हुआ। ईर्ष्यावश उन्होंने बालक की हत्या कर दी और शव को पास के तालाब में फेंक दिया।
जब यह खबर घृष्णा तक पहुँची, तो उन्होंने कोई विलाप नहीं किया। वे अपने नित्य पार्थिव पूजन और शिव अर्चना में लगी रहीं। उनकी अटूट भक्ति और धैर्य से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए और उनके पुत्र को पुनर्जीवित कर दिया।
भगवान शिव ने घृष्णा से वरदान मांगने को कहा, तब घृष्णा ने विनम्रता से कहा –
“हे प्रभु! यदि आप वास्तव में मुझ पर प्रसन्न हैं, तो कृपया यहाँ सदा के लिए निवास करें और संसार के कल्याण के लिए स्वयं प्रकट हों।”
भगवान शिव ने उनकी इच्छा पूर्ण की और यहाँ “घृष्णेश्वर” ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हो गए।
मंदिर की विशेषताएँ
- दक्षिण भारतीय शैली में निर्मित: यह मंदिर विशाल लाल पत्थरों से बना है और इसकी वास्तुकला दक्षिण भारतीय मंदिरों से मेल खाती है।
- शिवलिंग का विशेष पूजन: यहाँ शिवलिंग पर गंगाजल, दूध और पंचामृत से अभिषेक किया जाता है।
- एलोरा गुफाओं के पास स्थित: यह मंदिर एलोरा की प्रसिद्ध कैलाश गुफा से मात्र कुछ ही दूरी पर स्थित है।
- स्त्रियों को स्वयं अभिषेक की अनुमति: अन्य कई शिवालयों में केवल पुरुषों को ही जलाभिषेक की अनुमति होती है, लेकिन यहाँ महिलाएँ भी सीधे शिवलिंग पर अभिषेक कर सकती हैं।
पूजन विधि और अभिषेक
- पार्थिव शिवलिंग पूजन: घृष्णेश्वर मंदिर में पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व है।
- रुद्राभिषेक: यहाँ भगवान शिव का पंचामृत और बिल्वपत्र से अभिषेक किया जाता है।
- संपूर्ण शिव परिवार की पूजा: यहाँ केवल भगवान शिव ही नहीं, बल्कि माता पार्वती, गणेशजी और कार्तिकेयजी की पूजा का भी विशेष महत्व है।
- संतान प्राप्ति के लिए विशेष पूजन: जो भक्त संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, वे यहाँ विशेष रूप से पूजा करवाते हैं।
अगला पड़ाव – उज्जैन का महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद अब हमारी यात्रा पश्चिम से उत्तर की ओर बढ़ रही है। अगला पड़ाव है उज्जैन का महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, जो कालचक्र के अधिपति शिव का निवास है।
हमारी यह पवित्र यात्रा कल भी जारी रहेगी, तो जुड़े रहें और अपने परिवार, मित्रों और बच्चों को भी इस पावन यात्रा का सहभागी बनाएं। शिव की कृपा सभी पर बनी रहे! हर हर महादेव!