क्या आप भी ऋषि, महर्षि, मुनि, साधु, संत और कथावाचक को एक ही समझते हैं?

हिंदू समाज में कई ऐसे लोग हैं जिन्होंने समाज से अलग रहकर धर्म में ज्ञान और दक्षता हासिल की और फिर समाज को अलग दिशा दिखाई है। ये अलग बात है कि उनमें से सबने अलग-अलग वेश-भूषा धारण की हुई है, अलग-अलग जीवनशैली अपनाई हुई है। लेकिन इन सबमें एक बात आम है और वह है वैराग्य और लोक-कल्याण। इनमें से कुछ साधु, कुछ संत, तो कुछ मुनि के रूप में कहलाते हैं। अक्सर लोगों को लगता है कि ये सब एक ही होते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। इन सबमें अंतर है। तो, चलिए समझते हैं कि साधु, संत, ऋषि, मुनि और कथावाचक में क्या अंतर है…

जो सत्य का आचरण करता है, वो संत कहलाता। संत आत्मज्ञानी होते हैं, आध्यात्मिक होते हैं और इस समाज में रहते हुए लोगों का मार्गदर्शन करते हैं, जैसे संत कबीरदास, संत तुलसीदास, संत रविदास इत्यादि। इनका आचरण या जीवनशैली एक ऋषि, मुनि अथवा संन्यासी से बहुत अलग होता है। ये शांत, सहज, सरल और जिज्ञासु होते हैं। ये रचनायें भी करते हैं, समाज को संदेश भी देते हैं और भजन-कीर्तन भी करते हैं।
साधु
साधु उन्हें कहा जाता है, जो समाज से थोड़ा हटकर अधिकतर समय साधना में लीन रहते हैं। साधु की वेश-भूषा थोड़ी अलग हो जाती है क्योंकि उन्हें समाज और भौतिक संसार से उतना लेना-देना नहीं होता। शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति काम, क्रोध, लोभ मोह इत्यादि से दूर रहता है, उन्हें साधु ही कहा जाता है। इनके लिए वेदों का ज्ञान प्राप्त करना भी आवश्यक नहीं है। ये जो कुछ अर्जित करते हैं, वो अपनी साधना से ही करते हैं और एक वैरागी के समान जीवन व्यतीत करते हैं।

ऋषि

प्राचीन समय में ऋषि उन ज्ञानियों को कहा जाता था, जिन्होंने वैदिक रचनाओं का निर्माण किया था। ऋषि कठोर जीवन जीते हैं, कठोर तपस्या करते हैं और संसार के क्रोध, लोभ, मोह, माया, अहंकार, इर्ष्या इत्यादि से कोसों दूर रहते हैं।मुनि
मुनि की प्रवृत्ति धार्मिक के बजाय आध्यात्मिक होती है। जो ज्ञानी अधिकांश समय मौन धारण करते हैं या बहुत कम बोलते हैं, उन्हें मुनि कहा जाता है। लेकिन मुनियों को वेद एवं ग्रंथों का पूर्ण ज्ञान होता है। जो ऋषि घोर तपस्या के बाद मौन धारण करने की शपथ लेते हैं, वह भी मुनि कहलाते हैं।

महर्षि
महर्षि का अर्थ है ‘महा (सबसे बड़े) ऋषि’। यह उपाधि ऋषि से ऊपर होती है। यह उन महात्माओं को कहा जाता है, जिन्हें दिव्य चक्षु की प्राप्ति होती है। मनुष्य को तीन प्रकार के चक्षु प्राप्त होते हैं – ज्ञान चक्षु, दिव्य चक्षु और परम चक्षु। जिन्हें ज्ञान चक्षु की प्राप्ति होती है, उन्हें ऋषि कहा जाता है; जो दिव्य चक्षु प्राप्त कर लेते हैं वो महर्षि कहलाते हैं और जो परम चक्षु को जागृत कर लेते हैं, उन्हें ब्रह्मर्षि कहा जाता है। अंतिम महर्षि दयानंद सरस्वती हुए थे।कथावाचक
वर्तमान समय में कई कथावाचक होने लगे हैं। लोग उन्हें भी साधु-संतों जैसा सम्मान देते हैं लेकिन कथावाचक वह होते हैं, जो भगवान की कथा लोगों तक सरल रूप से पहुंचाते हैं। ऐसे में इन्हें संत, महात्मा, ऋषि, एवं मुनि के श्रेणी में नहीं रखा जाता है।