सभी व्रतों का राजा है ये व्रत: पुण्य, मोक्ष और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति का महान पर्व

सनातन धर्म में व्रतों का अत्यधिक महत्व बताया गया है, लेकिन यदि कोई एक व्रत सर्वाधिक पुण्यदायी, मोक्षदायी और भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त कराने वाला है, तो वह एकादशी व्रत है। इसीलिए इसे ‘व्रतों का राजा’ कहा जाता है। एकादशी का व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है, और सात जन्मों तक किए गए दोष समाप्त हो जाते हैं। यह व्रत न केवल भौतिक सुख-समृद्धि प्रदान करता है, बल्कि अंततः वैकुंठधाम की प्राप्ति भी कराता है।

एकादशी देवी का प्राकट्य और विष्णु की कृपा

पुराणों के अनुसार, एक बार दुष्ट दैत्य मुर ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की गुहार लगाई। भगवान विष्णु ने मुर दैत्य से युद्ध किया, लेकिन जब उन्होंने विश्राम लिया, तब मुर ने उन पर आक्रमण कर दिया। उसी समय भगवान विष्णु के शरीर से एक कन्या प्रकट हुई, जो युद्ध-कला में अत्यंत निपुण थी। उसने मात्र हुंकार से ही मुर दैत्य को भस्म कर दिया। यही एकादशी देवी थीं।

भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। एकादशी देवी ने प्रार्थना की—

“यदि आप प्रसन्न हैं, तो कृपा करके मुझे सभी व्रतों में श्रेष्ठ बनाइए। जो भी श्रद्धा-भक्ति से मेरे व्रत का पालन करें, उन्हें धन, धर्म, सुख और अंत में मोक्ष प्रदान करें।”

भगवान विष्णु ने इसे स्वीकार करते हुए कहा—

“जो तुम्हारे भक्त हैं, वे मेरे भी भक्त होंगे। जो तुम्हारा व्रत करेंगे, वे निश्चित ही मोक्ष प्राप्त करेंगे।”

एकादशी व्रत: व्रतों में सर्वोत्तम क्यों?

1. पापों का नाश: इस दिन किए गए पुण्यकर्म कई गुना फल देते हैं।
2. मोक्षदायक: इस व्रत से वैकुंठधाम की प्राप्ति होती है।
3. भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति: यह व्रत न केवल सांसारिक सुख देता है, बल्कि मोक्ष भी प्रदान करता है।
4. सभी व्रतों में प्रधान: जैसे भगवान विष्णु देवताओं में श्रेष्ठ हैं, सूर्य प्रकाश-तत्त्वों में प्रधान हैं, गंगा नदियों में सर्वश्रेष्ठ है, वैसे ही एकादशी सभी व्रतों में श्रेष्ठ है।

विशेष नक्षत्रों में एकादशी का महत्व

यदि एकादशी कुछ विशेष नक्षत्रों में आती है, तो इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है—

  • पुनर्वसु नक्षत्र में: यह ‘जया एकादशी’ कहलाती है, जिससे सभी पाप नष्ट होते हैं।
  • श्रवण नक्षत्र में: यह ‘विजया एकादशी’ कहलाती है, जिसमें व्रत, दान, और ब्राह्मण-भोजन का फल हजार गुना बढ़ जाता है।
  • रोहिणी नक्षत्र में: इसे ‘जयन्ती एकादशी’ कहते हैं, जो गोविन्द भगवान के पूजन से सारे पापों का अंत कर देती है।
  • पुष्य नक्षत्र में: इसे ‘पापनाशिनी एकादशी’ कहते हैं, और इसका व्रत हजार एकादशियों के फल के बराबर होता है।

अन्न त्यागने का कारण

शास्त्रों में कहा गया है कि “एकादशी के दिन अन्न में समस्त पाप समा जाते हैं”। इसलिए इस दिन अन्न ग्रहण करने से पाप लगता है। विशेष रूप से चावल और गेहूं नहीं खाने चाहिए। यदि कोई व्रत न भी कर सके, तो कम-से-कम चावल के सेवन से अवश्य बचना चाहिए।

एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और ज्योतिषीय आधार

  • ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, शुक्ल पक्ष की एकादशी को चन्द्रमा की 11 कलाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है, जिससे शरीर और मन चंचल हो जाते हैं।
  • कृष्ण पक्ष की एकादशी को सूर्य की 11 कलाओं का प्रभाव पड़ता है, जिससे मानसिक अस्थिरता बढ़ जाती है।
  • उपवास करने से न केवल शरीर को बल मिलता है, बल्कि मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।

कुछ महत्वपूर्ण नियम

  • त्रिस्पृशा एकादशी: यदि उदयकाल में थोड़ी-सी एकादशी, मध्य में पूरी द्वादशी और अंत में थोड़ी-सी त्रयोदशी हो, तो इसे ‘त्रिस्पृशा’ एकादशी कहते हैं। इसका व्रत हजारों एकादशियों के बराबर फल देता है।
  • दशमी युक्त एकादशी व्रत नहीं करना चाहिए: यह दोषपूर्ण होता है और संतानहीनता का कारण बन सकता है।

एकादशी व्रत के अद्भुत लाभ

✅ सभी रोगों और दोषों से मुक्ति
✅ दीर्घायु, सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति
✅ पूर्वजों और सौ पीढ़ियों का उद्धार
✅ मोक्ष और भगवान की भक्ति का संयोग
✅ सभी इच्छाओं की पूर्ति

एकादशी व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि का एक महान माध्यम है। यह व्रत मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करने के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और सांसारिक तथा पारलौकिक लाभ पाने के लिए एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।

“एकादशी व्रत पालन करें और भगवान विष्णु की कृपा से अपने जीवन को सफल बनाएं!”