ऋषि-मुनियों की गौरवगाथा: सनातन धर्म के महर्षि एवं मुनि
सनातन धर्म में ऋषि-मुनियों का स्थान सर्वोच्च रहा है। वेदों, उपनिषदों एवं पुराणों में ऋषियों तथा मुनियों का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने अपने तप, साधना एवं ज्ञान के बल पर धर्म और संस्कृति का मार्गदर्शन किया। यहाँ हम हिंदू धर्म के प्रमुख ऋषि-मुनियों के जीवन, कृतित्व एवं उनके योगदान का वर्णन कर रहे हैं।
1. महर्षि वशिष्ठ
महर्षि वशिष्ठ सप्तऋषियों में से एक एवं राजा दशरथ के राजगुरु थे। वेदों के ज्ञाता एवं रामायण के महत्वपूर्ण पात्रों में से एक माने जाते हैं। उनके द्वारा रचित “योग वशिष्ठ” अद्वैत वेदांत का अद्भुत ग्रंथ है।
2. महर्षि विश्वामित्र
पूर्व में राजा रहे महर्षि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया। उन्होंने ही गायत्री मंत्र की रचना की थी। उनके द्वारा राम और लक्ष्मण को दी गई शिक्षा ने राक्षसों के विनाश में सहायता की।
3. महर्षि कण्व
महर्षि कण्व ऋग्वैदिक काल के महान ऋषि थे। उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की एवं उनकी गोद में ही शकुंतला का पालन-पोषण हुआ, जिनसे भरत वंश की स्थापना हुई।
4. महर्षि अगस्त्य
महर्षि अगस्त्य दक्षिण भारत में वेदों एवं सनातन धर्म के प्रचारक माने जाते हैं। उन्होंने तमिल भाषा एवं सिद्ध साहित्य में भी योगदान दिया। उनके नाम पर “अगस्त्य संहिता” नामक ग्रंथ प्रसिद्ध है।
5. महर्षि अत्रि
महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक थे। उनकी पत्नी देवी अनुसूया थीं, जिनकी तपस्या से ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश तीनों ने उनके पुत्र रूप में जन्म लिया। उनके पुत्र दत्तात्रेय को अवतारी पुरुष माना जाता है।
6. महर्षि नारद
महर्षि नारद को देवर्षि कहा जाता है। वे भक्ति मार्ग के महान प्रवर्तक एवं नारद भक्ति सूत्र के रचयिता माने जाते हैं। वे सदैव “नारायण-नारायण” का जप करते हुए सभी लोकों में भ्रमण करते रहते थे।
7. महर्षि भृगु
महर्षि भृगु ने भृगु संहिता की रचना की थी, जो ज्योतिष ग्रंथों में प्रमुख मानी जाती है। उनके वंशजों को भौमिक (भूमि से जुड़े) एवं अग्निहोत्री परंपरा का अनुसरण करने वाला माना जाता है।
8. महर्षि वेदव्यास
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की एवं चारों वेदों का संकलन किया। वे पराशर ऋषि के पुत्र एवं भक्त शिरोमणि श्रीकृष्ण के गुरु भी थे। उनकी रचनाएँ हिंदू धर्म का मूल स्तंभ मानी जाती हैं।
9. महर्षि गौतम
महर्षि गौतम न्यायशास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं। उनकी रचना “गौतम धर्मसूत्र” धर्म, समाज एवं आचारशास्त्र का महत्वपूर्ण ग्रंथ है। वे भी सप्तऋषियों में से एक थे।
10. महर्षि वाल्मीकि
महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि माना जाता है। उन्होंने संस्कृत में रामायण की रचना की। उनके द्वारा प्रदत्त शिक्षा के कारण ही माता सीता के पुत्र लव-कुश महायोद्धा बने।
11. महर्षि याज्ञवल्क्य
महर्षि याज्ञवल्क्य ने शुक्ल यजुर्वेद का ज्ञान दिया और अपने गूढ़ उपदेशों से भारतीय अध्यात्म को एक नई दिशा दी। उनकी रचनाएँ वैदिक ज्ञान का मूल स्त्रोत मानी जाती हैं।
12. महर्षि शांडिल्य
महर्षि शांडिल्य भक्ति दर्शन के प्रमुख ऋषि थे। उन्होंने “शांडिल्य भक्ति सूत्र” की रचना की, जिसमें भक्ति के गूढ़ रहस्यों का वर्णन मिलता है।
13. महर्षि कपिल
महर्षि कपिल ने सांख्य दर्शन की स्थापना की। उनके द्वारा प्रतिपादित तत्वज्ञान भारतीय दर्शनशास्त्र के मूल स्तंभों में से एक है।
14. महर्षि दधीचि
महर्षि दधीचि ने धर्म की रक्षा हेतु अपनी अस्थियाँ दे दीं, जिससे वज्र बनाया गया और जिससे इंद्र ने वृत्रासुर का वध किया। उनका त्याग सनातन धर्म के महानतम बलिदानों में गिना जाता है।
15. महर्षि मांडव्य
महर्षि मांडव्य अपने कठोर तप और धैर्य के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने अन्याय का प्रतिरोध किया और धर्म के मूल तत्वों की रक्षा की।
निष्कर्ष
ये सभी ऋषि-मुनि न केवल सनातन धर्म के आधार स्तंभ हैं, बल्कि उन्होंने भारतीय संस्कृति, आध्यात्म एवं समाज को एक दिशा देने का कार्य किया है। इनके ज्ञान, तप और साधना से हमें जीवन के उच्चतम आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है।