द्वारका धाम: श्रीकृष्ण की पावन लीला भूमि एवं मोक्षद्वार

द्वारका धाम: श्रीकृष्ण की पावन लीला भूमि एवं मोक्षद्वार

 

कल हमने आपको हिंदू धर्म के प्रमुख चारधामों में से प्रमुख बद्रीनाथ धाम ले चले थे

बद्रीनाथ धाम: स्वर्ग का द्वार, जहाँ स्वयं तपस्या करते हैं भगवान

तो आज हम आपको लेकर चलेंगे श्री कृष्ण कर्मभूमि द्वारका धाम।, तो आइए चलते हैं श्री द्वारका धाम

सनातन धर्म में द्वारका धाम का विशेष महत्त्व है। यह केवल एक ऐतिहासिक नगरी नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति और भक्ति का केंद्र है। यह वही पवित्र भूमि है, जहां स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाएँ रचीं, यदुवंश की स्थापना की और धर्म की रक्षा हेतु अनेकों अलौकिक कार्य किए। श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण, महाभारत तथा स्कंद पुराण में द्वारका का विस्तार से उल्लेख मिलता है। यह चार धामों में से एक है, जिसे मोक्षप्रदाता माना गया है।

शास्त्रों में द्वारका का उल्लेख

1. श्रीमद्भागवत महापुराण (कथा और स्थापना)

श्रीमद्भागवत महापुराण (10.50.57-58) में वर्णन मिलता है कि जब जरासंध ने सत्रह बार मथुरा पर आक्रमण किया, तब श्रीकृष्ण ने समुद्र देव से 12 योजन विस्तृत भूमि मांगी और वहीं दिव्य नगरी द्वारका की स्थापना की।

श्रीमद्भागवत (10.52.17) में कहा गया है:
“सागरान्तःस्थितां श्रीमद् द्वारवत्यां पुरीं प्रभुः।”
अर्थात् द्वारका समुद्र के भीतर बसी एक भव्य और श्रीसम्पन्न नगरी थी।

2. महाभारत (शांतिपर्व और सभा पर्व)

महाभारत के शांतिपर्व (208.29) में कहा गया है कि द्वारका नगरी में ही श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को राजधर्म की शिक्षा दी थी। सभा पर्व (38.25) में इसका उल्लेख “कुशस्थली” नाम से किया गया है, जिसे श्रीकृष्ण ने नया स्वरूप प्रदान किया।

3. विष्णु पुराण (पांचवा अंश, अध्याय 23-38)

विष्णु पुराण (5.23) में कहा गया है कि भगवान श्रीकृष्ण ने यदुवंश को मथुरा के संकटों से बचाने हेतु द्वारका में बसाया। इसे “सुदर्शन चक्र की रक्षित नगरी” कहा गया है।

4. स्कंद पुराण (प्रभास खंड)

स्कंद पुराण में कहा गया है:
“यत्र श्रीकृष्णो भगवान् द्वारकायां पुरा स्थितः।
तं देशं पुण्डरीकाक्षं स्मरन्ति योगिनः सदा॥”

अर्थात्, जहां स्वयं श्रीकृष्ण निवास करते थे, वह भूमि योगियों द्वारा सदा स्मरणीय और मोक्षदायिनी मानी जाती है।

द्वारका: श्रीकृष्ण की भव्य नगरी

द्वारका नगरी 12 योजन (लगभग 96 किमी) में फैली थी। श्रीकृष्ण ने इसे 16 महलों, सुंदर सड़कों और विशाल द्वारों से अलंकृत किया था। यह नगर वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण था, जिसकी तुलना अमरावती से की जाती थी।

द्वारकाधीश मंदिर: भक्तों के लिए मोक्षद्वार

शास्त्रों के अनुसार, द्वारकाधीश मंदिर की स्थापना श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने की थी। यह मंदिर पंचद्वारों से युक्त है, जो आत्मा की पांच अवस्थाओं (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीय और आत्मज्ञान) का प्रतीक हैं।

गोमती संगम और पंचतीर्थ स्नान

स्कंद पुराण के प्रभास खंड में कहा गया है:
“गोमती-स्नानं कृत्वा द्वारकायां विशेषतः।
सर्वपाप-विनिर्मुक्तः विष्णुलोकं स गच्छति॥”

अर्थात् जो व्यक्ति गोमती संगम में स्नान करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को प्राप्त करता है।

महाप्रलय और द्वारका का अंत

महाभारत (मौसल पर्व) और भागवत पुराण (11.30.50) के अनुसार, जब यदुवंश का संहार हुआ और श्रीकृष्ण ने लीला समाप्त की, तब समुद्र ने द्वारका को निगल लिया। पुराणों में वर्णित यह घटना आधुनिक काल में भी प्रमाणित हुई जब भारतीय पुरातत्व विभाग ने समुद्र के भीतर द्वारका के प्राचीन अवशेष खोजे।

मानव जीवन में द्वारका धाम यात्रा का महत्त्व

1. मोक्ष प्राप्ति का द्वार

स्कंद पुराण में कहा गया है:
“यः कर्ता तीर्थयात्रायाः, स मुक्तिं लभते ध्रुवम्।
विशेषतः द्वारकायां, विष्णुलोके निवासति॥”

अर्थात्, जो व्यक्ति द्वारका की यात्रा करता है, वह निश्चित रूप से मोक्ष प्राप्त करता है और अंततः विष्णु लोक में निवास करता है।

2. श्रीकृष्ण के चरणों की भक्ति

द्वारका वह भूमि है जहां स्वयं श्रीकृष्ण ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष बिताए। यह स्थान उनकी लीलाओं का साक्षी है, जिससे भक्तों को आध्यात्मिक आनंद और भक्ति का अनुभव होता है।

3. पंचतीर्थ स्नान से पापों का नाश

शास्त्रों के अनुसार, गोमती संगम और द्वारका के पंचतीर्थ (गोमती घाट, चक्रतीर्थ, पांडव सरोवर, गोपी तालाब और रुक्मिणी सरोवर) में स्नान करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है।

4. जीवन में धर्म और सत्य का अनुसरण

महाभारत में द्वारका को धर्म, सत्य और नीति का केंद्र बताया गया है। श्रीकृष्ण ने यहाँ से धर्म की स्थापना की, जिससे व्यक्ति को जीवन में सत्य, अहिंसा और करुणा का मार्ग अपनाने की प्रेरणा मिलती है।

5. मन की शांति और आत्मिक उन्नति

द्वारका यात्रा व्यक्ति को सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठाकर ईश्वर की भक्ति में लीन होने का अवसर देती है। यह यात्रा मन को शांति प्रदान करती है और आध्यात्मिक जागरण का मार्ग प्रशस्त करती है।

6. चार धाम यात्रा का पूर्णता बिंदु

द्वारका चार धामों में से एक है। यदि कोई व्यक्ति बद्रीनाथ, रामेश्वरम और जगन्नाथ पुरी की यात्रा करता है, लेकिन द्वारका नहीं जाता, तो उसकी यात्रा अपूर्ण मानी जाती है।

7. द्वारका यात्रा से पूर्वजों का उद्धार

गरुड़ पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति द्वारका में जाकर भगवान द्वारकाधीश के दर्शन करता है, वह न केवल स्वयं के लिए पुण्य अर्जित करता है, बल्कि अपने पितरों को भी मोक्ष प्रदान करता है।

द्वारका यात्रा केवल तीर्थयात्रा नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, भक्ति, धर्म और मोक्ष का द्वार है। यह जीवन को एक नई दिशा प्रदान करती है और सांसारिक बंधनों से मुक्त कर आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है। इसलिए प्रत्येक सनातनी को जीवन में एक बार द्वारका यात्रा अवश्य करनी चाहिए।